सम्पादकीय में विश्व रंग, मनवा रे और नीरज/डॉ. सी. वसन्ता

कोरोना के ज़हर का कहर बरकरार है। अधिकांश साहित्यिक पत्रिकाएँ विश्राम मुद्रा में, कुछ ऑनलाइन और कुछ के संयुक्तांक, ऐसे संक्रान्तिकाल में पहला अन्तरा' का ये नियमित अक्टूबर-दिसम्बर अंक दीपोत्सव पर आपको सौंपते हुए सुखद महसूस कर रहे हैं। हमारा पिछला अंक काफ़ी चर्चा में रहा। 'गीत स्मृति' में जाने माने गीत समीक्षक . सुरेश गौतम ने गीतकार पं. रमानाथ अवस्थी को बड़ी शिद्दत से याद किया, वहीं रमानाथ जी के गीतों को पढ़कर पाठकों की प्रतिक्रियाओं ने हमारा काफ़ी उत्साहवर्धन किया। 'गीत गन्ध' में आज के चर्चित कवि विनोद निगम के गीतों पर मधु शुक्ला और यश मालवीय की कलम का कमाल भी पाठकों को रुचिकर लगा। हिन्दी साहित्य की वर्तमान स्थिति पर डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय के सारगर्भित विचारों के साथ ही श्री श्रीधर पराडकर डॉ. कलश्रेष्ठ और योगेश शर्मा के उद्वेलित करने वाले विचारों की भी खब सराहना हुई। अगले अंक में हम 'गीत स्मृति' में चर्चित गीतकार और प्रसिद्ध मंचीय कवि स्वर्गीय देवराज दिनेश एवं 'गीत गन्ध' में आपकी भेंट, गीतों में नव्यता के पक्षधर श्री माहेश्वर तिवारी से करवायेंगे। मूलरूप से गीत के लिये समर्पित होने के बावजूद पत्रिका में साहित्य की अन्य लगभग सभी विधाओं का समावेश कर इसे पूर्ण रूप से साहित्यिक पत्रिका के रूप में चर्चित करने में हम प्रयासरत हैं, जिसका अनुभव आप भी कर रहे होंगे। अंक में वरिष्ठ कहानीकार पूरन सिंह के साथ ही डॉ. विनीता राहुरीकर और कुशाग्र मिश्रा की कहानी 'एक पुराना मौसम लौटा' भी खूब चर्चा में रही। डॉ. विनीता राहुरीकर तो अपनी कविताओं और कहानियों में प्रेम की शल्य चिकित्सा के लिये चर्चित हैं हीं। मधु शुक्ला हमारी सम्पादक के अतिरिक्त एक प्रभावशाली कवयित्री भी हैं। उनके गीतों में नव्यता या कहन की ताज़गी, एक सारगर्भित छवि निर्मित करती है। पिछले अंक में प्रकाशित उनकी दो रचनाएँ, 'चाय तो बहाना है' और 'नदी किनारे' खूब चर्चा में रहीं, जिसका उल्लेख वरिष्ठ कवि श्री बालस्वरूप राही एवं यश मालवीय सहित अनेक साहित्यकारों एवं पाठकों ने अपनी प्रतिक्रियाओं में किया। इसके अतिरिक्त ऋषि श्रृंगारी, जयकृष्ण राय 'तुषार', जगदीश श्रीवास्तव, सत्यमोहन वर्मा, हस्तीमल हस्ती, कान्ता राय जैसे अनेक रचनाकारों ने अंक को गरिमा प्रदान की। 'विश्व रंग' हिन्दी साहित्य, भारतीय भाषाओं, कलाओं एवं संस्कृति का एक वैश्विक कार्यक्रम पिछले वर्ष भोपाल में आयोजित हुआ, जिसका आकल्पन एवं संयोजन के जाने माने वरिष्ठ कवि कथाकार श्री संतोष चौबे ने किया। कुलाधिपति की हैसियत से उनके नेतृत्व में गतिशील रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय सहित पाँच विश्वविद्यालयों के प्रबंधन ने इस कार्यक्रम को अंजाम देने में महती भमिका निभाई। संतोष चौबे के नेतृत्व में आयोजित यह विश्वस्तरीय कार्यक्रम भारत सरकार के 'विश्व हिन्दी सम्मेलन' से ज़्यादा महत्वपूर्ण माना गया, क्योंकि जहाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन का दायरा केवल हिन्दी भाषा तक सीमित है, वहीं 'विश्व रंग' हिन्दी साहित्य के अतिरिक्त विभिन्न कलाओं एवं भारतीय भाषाओं को भी अपने आयोजन की परिधि में समेटे हुए है। पिछले वर्ष आयोजित इस कार्यक्रम में विश्व के अनेक देशों के सैंकड़ों प्रतिनिधियों ने भाग लियाउल्लेखनीय यह भी है कि इस कार्यक्रम को प्रतिवर्ष करने की घोषणा के अंतर्गत, कोरोना महामारी के होते हए भी परे नवम्बर माह में यह कार्यक्रम भारत ही नहीं. विश्व के लगभग पन्द्रह से अधिक देशों में ऑनलाइन आयोजित हो रहा है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यह आयोजन अपने अंतिम चरण में है। पहला अन्तरा' परिवार इस 'ग्लोबल आयोजन के लिये अकल्पनीय एवं बहमुखी प्रतिभा के धनी आदरणीय संतोष चौबे जी और उनके नेतृत्व में गतिमान सभी संस्थाओं और सहयोगियों को हार्दिक बधाई सम्प्रेषित करता है। 'पहला अन्तरा' साहित्यिक रचनाओं यथा कविता. कहानी, लघुकथा, आलेख, ललित निबन्ध, साक्षात्कार आदि के अतिरिक्त साहित्य के विविध विषयों पर 'स्थायी स्तम्भ' के अंतर्गत परिचर्चायें भी पाठकों को परोसता रहता है। गीत स्मृति', 'गीत-गन्ध', 'हिन्दी साहित्य समाज के हाशिये पर क्यों?' आदि ऐसे ही स्तम्भ लम्बे समय से पत्रिका में आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। पाठकों को स्मरण होगा कि लगभग पाँच वर्ष तक उसी प्रकार 'मनवा रे' एक स्थायी स्तम्भ के अंतर्गत चर्चित कथाकार ज्योत्सना प्रवाह 'प्रेम' विषय पर हर अंक में प्रेम के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करती रहीं। 'प्रेम एक गीत है' से प्रारंभ कर 'प्रेम और घृणा' से गुज़रते हुए, प्रेम के अनछुए अनेक पहलुओं को अनुभवी लेखिका ने पत्रिका के लगभग बीस अंकों में, इस कुशलता से चित्रित किया कि पत्रिका साहित्यिक हल्कों में चर्चा का विषय बन गई । प्रफुल्लित हो रहे हैं हम, कि 'पहला अन्तरा' में प्रकाशित ये आलेख 'मनवा रे' के नाम से ही पुस्तक के रूप में लिटिल वर्ड पब्लिकेशंस, नई दिल्ली द्वारा हाल ही में प्रकाशित किये गये हैं, जिसकी अनुशंसा प्रसिद्ध लेखिका सूर्यबाला जी ने की एवं जिसकी विस्तृत समीक्षा इसी माह दिल्ली से प्रकाशित राष्ट्रीय मासिक पत्रिका 'ककसाड़' में प्रकाशित हुई हैपुस्तक विक्रय हेतु 'ऐमेज़ोन' पर उपलब्ध है लेखिका ज्योत्सना प्रवाह जी को 'पहला अन्तरा' परिवार की ओर से हार्दिक बधाई। शताब्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि गोपालदास शताब्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि गोपालदास नीरज को हिन्दी साहित्य के समीक्षकों ने भले ही नज़रन्दाज किया हो, उन्हें मंचीय कवि कहकर उनकी उपेक्षा की गई हो, किंतु यह ध्रुव सत्य है कि नीरज के ज़िक्र के बिना आधुनिक हिन्दी गीत की कल्पना नहीं की जा सकती। भारत ही नहीं विश्व में जहाँ भी हिन्दी भाषी या हिन्दी प्रेमी हैं, वहाँ तक नीरज के गीतों की चर्चा है। मैंने व्यक्तिगत रूप से अमेरिका, यू.के. जैसे दूरदराज़ देशों में हिन्दी प्रेमियों के बीच नीरज की लोकप्रियता का अनभव किया है। पिछले दिनों मुझे दक्षिण भारत (हैदराबाद) से डाक द्वारा एक दो किलो का पार्सल प्राप्त हुआ, जो एक अहिन्दी भाषी/ तेलगू भाषी महिला डॉ. सी. बसंता ने भेजा था, जिसमें बसन्ता जी द्वारा हिन्दी में लिखित मौलिक पुस्तकों के अतिरिक्त तेलगू से हिन्दी में अनूदित दो पुस्तकें शामिल हैं। मुझे जानकर आश्चर्य हुआ कि इस तेलगू भाषी दक्षिण भारतीय महिला ने हिन्दी में एम.ए. किया है एवं गोपालदास नीरज के गीतों पर शोध कार्य कर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। उन ने मुझे 'गीतकार नीरज' शोध ग्रंथ की ज़ीरोक्स प्रति भी प्रेषित की है। यह शोध ग्रंथ, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली ने पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया है। 'पहला अन्तरा' परिवार डॉ. सी. बसन्ता को प्रणाम करता है। पिछले पचास वर्षों से कवि सम्मेलनों में अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज करवाने वाले, 'ये पीला वासन्तिया जैसे अनेक लोकप्रिय गीतों और ग़ज़लों के रचयिता, कंठ के धनी, लोकप्रिय कवि श्री रमेश यादव का पिछले दिनों भोपाल में निधन हो गया। वे पिचहत्तर वर्ष । लगभग पचास वर्षों तक साहित्य के माध्यम से मैं व्यक्तिगत रूप से मित्रवत उनसे जडा रहा। पहला अन्तरा' परिवार की ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि। दीपोत्सव की 'पहला अन्तरा' परिवार की ओर से आप सभी को बधाई एवं शुभकामनाएँ। प्रस्तुत अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की हमें प्रतीक्षा रहेगी।

आदर सहित